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हरिहरपुरी के रोले




हरिहरपुरी के रोले


संस्कारों का मेल,बनाता उत्तम मानव।

मन का दूषित भाव,बनाता राक्षस दानव।।


भर उत्तम संस्कार, बने मानव सर्वोत्तम।

संस्कारों का सिंधु, सतत गढ़ता पुरुषोत्तम।।


संस्कारों  का भाव,सदा ऊँचा होता है।

संस्कार अनमोल,बीज अमृत बोता है।।


खोजो पावन मूल्य, करो सुंदर मन रचना।

दिव्य भाव आधार,गढ़त सुंदर संरचना।।


मिट जाता अपराध, अगर मन निर्मल-पावन।

बनता पाक समाज, अगर मन शुद्ध सुहावन।।


संस्कारो का योग, चाहिये बस मानव को।

भौतिकता की भीड़, रचा करती दानव को।।


मानव का निर्माण, किया करता जो डट कर।

रचता सुघर समाज, अपराधों से मुक्त कर।।


बलात्कार का अंत ,जगत में निश्चित होगा।

मानव हो यदि विज्ञ,सदा मनसा आरोगा।।


हरिहरपुरी के रोले


संस्कारों का मेल,


संस्कारों  का भाव,सदा ऊँचा होता है।

संस्कार अनमोल,बीज अमृत बोता है।।


खोजो पावन मूल्य, करो सुंदर मन रचना।

दिव्य भाव आधार,गढ़त सुंदर संरचना।।


मिट जाता अपराध, अगर मन निर्मल-पावन।

बनता पाक समाज, अगर मन शुद्ध सुहावन।।


संस्कारो का योग, चाहिये बस मानव को।

भौतिकता की भीड़, रचा करती दानव को।।


मानव का निर्माण, किया करता जो डट कर।

रचता सुघर समाज, अपराधों से मुक्त कर।।


बलात्कार का अंत ,जगत में निश्चित होगा।

मानव हो यदि विज्ञ,सदा मनसा आरोगा।।





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2 Comments

Abhilasha deshpande

12-Jan-2023 06:11 PM

Nice

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अदिति झा

12-Jan-2023 04:28 PM

Nice 👍🏼

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